Friday, 4 January 2019

मंटो और हम

 
                                                      


                                                      "  मैं अपनी आँखें बंद करभी लूँ,
                                                     लेकिन अपने ज़मीर का क्या करूँ "


कल रात जब ये ख्याल मेरे ज़हन में आया तो मन थोड़ा मचल सा गया | कौन  है ये  मंटो ? क्या रिश्ता है इससे मेरा ?
ठंडा गोश्त और काली सलवार को पढ़ कर लगा मंटो हम में से ही है | मंटो ने जो भी लिखा वो वहश भले ही हो मगर हवस से लबालब भरे समाज पर  तमाचा था  | एक ऐसा तमाचा जिसने न सिर्फ उस समय के लोगों को  बल्कि  उस समय के लेखकों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया था | वैश्याओं, रिश्तों और ऐसे कई गंभीर मुद्दे जो उस समय लोग सुनना भी नहीं चाहते थे , ऐसे ही मुद्दे को अपनी कहानी में पिरो कर मंटो ने समाज को उसका आइना  दिखाया |
बटवारे के बाद जब पाकिस्तान जाना हुआ तो ये सब मंटो को बिलकुल न भाया |

“ज़माने के जिस दौर से हम गुज़र रहे हैं, अगर आप उससे वाकिफ़ नहीं हैं तो मेरे अफसाने पढ़िये और अगर आप इन अफसानों को बरदाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब है कि ज़माना नाक़ाबिले-बरदाश्त है। मेरी तहरीर(लेखन) में कोई नुक़्स नहीं । जिस नुक़्स को मेरे नाम से मनसूब किया जाता है, वह दरअसल मौजूदा निज़ाम का एक नुक़्स है। मैं हंगामा-पसन्द नहीं हूं और लोगों के ख्यालात में हैज़ान पैदा करना नहीं चाहता। मैं तहज़ीब, तमद्दुन, और सोसाइटी की चोली क्या उतारुंगा, जो है ही नंगी। मैं उसे कपड़े पहनाने की कोशिश भी नहीं करता, क्योंकि यह मेरा काम नहीं, दर्ज़ियों का काम है ।”

 लेखन के प्रयोग जो मंटो ने किये वो इस समाज को बर्दाश्त ना हुए | यहां तक की उनकी एक कहानी को तो फैज़ अहमद फैज़ ने अदब के मेटरों से बाहर बता दिया था | 

"नीम के पत्ते कड़वे सही लेकिन खून तो साफ़ करते हैं "

मंटो का लेखन आपको एक खूँखार दुनिया का रास्ता दिखाता है | अगर आप उत्साह से भरे कुछ बेहद रोचक और अलग पढ़ना चाहते हैं तो मंटो की कहानियां आपका "बर्खुरदार" कहते हुए स्वागत करती हैं|
 शुरुवाती दिनों में जब मेरे प्रयोग शुरू हुए मंटो पर तो सिर्फ ये मक़सद था की सामाजिक मुद्दों को किस कलाकारी से कागज़ पे उतारा जाए| प्यार और बिछड़े हुए आशिकों के लेखन पढ़ के महसूस हुआ के लोगों ने अपने दिमाग को सोच वाले कंक्रीट की दीवारों से ढक लिया है जिन पर प्यार और आशिकों के रंगीन पोस्टर चिपके हुए है| इन लोगों को लाल रंग सिर्फ इश्क़ का दिख रहा है बहते खून का नहीं |

इन सब गडनाओं के बीच एक और प्रमुख चीज़ दिमाग में आयी की हो सकता है मंटो की हत्या हम जैसे इश्किया और रंगीन लोगों ने ही करदी हो | कोई लेखक ऐसे ही तो पागल नहीं हुआ होगा | मंटो की दुनिया उनके चश्मे तक ही सीमित रह गयी थी जिसके एक तरफ नशे से भरपूर कहानियां बयाँ करती उनकी आँखें थी तो दूसरी तरफ एक ज़माना जिसने मंटो के लेखन को वहश साबित कर दिया था|

ज़माने के हर दर्द को सहने वाला एक कहानीकार, बदबू और शराब का एक खोखा किस तरह से हो जाता है ये मंटो की शक्सियत से पता चलता है |
मंटो से न तो प्रेरित हुआ जा सकता है क्योंकि उनके जैसे लेखन का साहस बहुत मुश्किल है |  न उनको नकारा जा सकता है क्योंकि सामाजिक सच्चाई से हम कब तक दूर रह सकते हैं  | सिर्फ उनको पढ़ा जा सकता है महसूस किया जा सकता है|  मैं सबको सलाह देता हूँ प्यार रुपी रंग से  फुर्सत मिले तो इस संघर्ष से भरे दौर का लेखन जरूर पढ़ें | ये आपको कुछ सिखाएगा नहीं लेकिन  आपको सच सुनने की हिम्मत जरूर जगायेगा ||




                                                                       सबके अंदर मंटो है !!








                                                                                                                        © उत्कर्ष  चतुर्वेदी 





2 comments:

  1. Very well written.It is the victory of a writer if he can arouse and awaken ones inner soul. You have great potential to express your thoughts. Keep it up!

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  2. Manto ek sonch hai,agar aap is sonch Ko samajh sakte hai to aap Manto hai...
    Mere Bhai,aap Manto Ko samajh rahe hai,unhe likha aapne,aap badhai ke hakdar ho....prou p of you.

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